गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008

दर्शील सफारी-छोरे में है दम


मार्च में होने वाले फिल्म फेयर पुरस्कारों में दर्शील सफारी को साल के सबसे बेहतरीन एक्टर वाली टोली में नामांकन मिलने से बॉलीवुड़ के मठाधीश मारे चिंता के दुबले हुए जा रहे हैं, कि कहीं नाटू दर्शील बादशाद खान पर भारी ना पड़ जाए. जिसने भी फिल्म देखी है, उसका सारे सिक्स पैक एब्स वाले मेट्रोसेक्सुअल नायकों से मोहभंग हो गया है और वो सिर्फ दर्शील नाम की ही बांसुरी पिपिहा रहा है. वैसे तारीफ करनी होगी आमिर खान की पारखी नज़र की, जिसे जमीन के दस फुट अंदर धंसा खजाना बिना पुरातत्व विभाग का चश्मा लगाये ही नजर आ जाता है. खुद की जेब ढ़ीली करने और चिकने-चुपड़े चॉकलेटी होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी फिल्म में दर्शील जैसे उदन्त बछड़े को मैदान में उतारने का चिकनगुनिया रूपी जोखिम लिया. वरना तो आजकल के बड़े स्टार घर की फिल्म में किसी दूसरे को साइड रोल देने में कई दिन घर में डिस्कशन करते हैं. रोल देते हैं भी तो पटकथा लेखकों पर दबाव बनाकर उस किरदार को इतना कमजोर करवा देते हैं कि वो बेचारा पूरी फिल्म में बीमार नज़र आता है.तारे जमीन पर बनाकर आमिर ने इस बार खुद को ज्यादा हिम्मती साबित किया बजाय दिल्ली के जंतर-मंतर में नर्मदा बांध के खिलाफ आवाज उठाने के. बिना छरहरी नायिका और बिना कम कपड़ों वाली आइटम गर्ल के आमिर ने इस साधारण सी कहानी को लेकर बहुत संवेदनशील फिल्म बनाई, मायानगरी के गुलजार पार्ट-२ प्रसून जोशी ने अपनी कविता और शंकर-एहसान-लॉय की बाजा पेटी तिकड़ी ने आमिर का बखूबी साथ दिया. वैसे चक दे इंडिया में काम तो शाहरुख ने भी धांसू किया है. कम से कम फिल्म देखने के बाद हमारी हॉकी टीम ने एशिया कप तो जीता और देश में कुछ महीने लोग क्रिकेट बुखार से चंगे होकर के हॉकी बुखार की चपेट में आये. अवार्ड किसी को भी मिले काम दोनों का शानदार था. बच्चे दर्शील को मिलेगा तो इससे उसे तो हौसला मिलेगा ही साथ ही हौसला मिलेगा दूसरे फिल्ममेकर्स को कम से कम देखादेखी ही फिल्में बनाएँगे, हौसला मिलेगा अमोल गुप्ते जैसे तमाम और नई पीढ़ी के पटकथा लेखकों को.

1 टिप्पणी:

Tarun ने कहा…

Arvind, chore me waqai bahut dum hai, isliye film dekhte hi humne usi din uski sameeksha me likh diya tha ki darsheel ko best actor category me nomination milna chahiye.....dekhiye aaj hua bhi yehi.

Aapne likha bahut achha hai.