tag:blogger.com,1999:blog-72698696022689381462024-03-04T23:50:45.722-08:00नया बरिस्तासाथ बैठने, बातें करने और फुरसत से थोड़ा गपियाने के लिएArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-64486376685554623372010-05-13T11:35:00.000-07:002010-05-13T11:44:01.438-07:00आओ फिर से दिया जलाएँआओ फिर से दिया जलाएँ<br />भरी दुपहरी में अंधियारा<br />सूरज परछाई से हारा<br />अंतरतम का नेह निचोड़ें-<br />बुझी हुई बाती सुलगाएँ।<br />आओ फिर से दिया जलाएँ<br /><br />हम पड़ाव को समझे मंज़िल<br />लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल<br />वतर्मान के मोहजाल में-<br />आने वाला कल न भुलाएँ।<br />आओ फिर से दिया जलाएँ।<br /><br />आहुति बाकी यज्ञ अधूरा<br />अपनों के विघ्नों ने घेरा<br />अंतिम जय का वज़्र बनाने-<br />नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।<br />आओ फिर से दिया जलाएँ<br /><br />साभार- अटल बिहारी वाजपेई जीArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-89277539135637367852010-05-07T23:36:00.000-07:002010-05-07T23:38:25.898-07:00कौरव कौन , कौन पांडवकौरव कौन<br />कौन पांडव,<br />टेढ़ा सवाल है|<br />दोनों ओर शकुनि<br />का फैला<br />कूटजाल है|<br />धर्मराज ने छोड़ी नहीं<br />जुए की लत है|<br />हर पंचायत में<br />पांचाली<br />अपमानित है|<br />बिना कृष्ण के<br />आज<br />महाभारत होना है,<br />कोई राजा बने,<br />रंक को तो रोना है|<br /><br />सौ..श्री अटल बिहारी वाजपेईArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-56745478856822379082010-05-04T12:26:00.000-07:002010-05-04T12:42:21.680-07:00जन्म-मरण अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP8ClpJt5-L2k5dbgR7CmWkf0uhM9v72IoMi0xlF4iY22wCfA-75CCeLritd5iAFBOKTpxUrtZO-O4R0D3pid3FATDgd87U7YL15JVtT0XM9kf0wYbUmzn9QubRjCV7NSdfr-0HiGbPNuy/s1600/DarkForest.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 147px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP8ClpJt5-L2k5dbgR7CmWkf0uhM9v72IoMi0xlF4iY22wCfA-75CCeLritd5iAFBOKTpxUrtZO-O4R0D3pid3FATDgd87U7YL15JVtT0XM9kf0wYbUmzn9QubRjCV7NSdfr-0HiGbPNuy/s200/DarkForest.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5467502462699930866" /></a><br /><br /><br /><br />क्या खोया, क्या पाया जग में<br />मिलते और बिछुड़ते मग में<br />मुझे किसी से नहीं शिकायत<br />यद्यपि छला गया पग-पग में<br />एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!<br /><br /><br />जन्म-मरण अविरत फेरा<br />जीवन बंजारों का डेरा<br />आज यहाँ, कल कहाँ कूच है<br />कौन जानता किधर सवेरा<br />अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!<br />अपने ही मन से कुछ बोलें! <br /><br />सौ..अटल बिहारी वाजपेईArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-76362375856163912182010-02-24T08:07:00.000-08:002010-02-24T08:19:23.045-08:00उम्र 65, 22 एमए व पांच पीएचडी डिग्रियां<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnWzAzsl-HLpIhwUteql36Kzx_zxIiWkjNSueJm7u004wqIT1d156HrnZ-yanaZ8iLKD-l67qkgBMm1yDtMueEVNqTl_34mHl8MzR-orX2ykGK4DtgC_2muNrJM-6udKVSOrExRsMjd14S/s1600-h/j.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnWzAzsl-HLpIhwUteql36Kzx_zxIiWkjNSueJm7u004wqIT1d156HrnZ-yanaZ8iLKD-l67qkgBMm1yDtMueEVNqTl_34mHl8MzR-orX2ykGK4DtgC_2muNrJM-6udKVSOrExRsMjd14S/s200/j.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5441845150218609026" /></a><br /><br /><br /><br /><br />उम्र के 65वें पड़ाव पर भी उत्तर प्रदेश निवासी आर. के. राय छात्र है, जिनके पास अभी 22 विषयों में स्नातकोत्तर [एमए], 5 विषयों में पीएचडी और 3 विषयों में डी-लिट की डिग्रियां है। <br />प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद निवासी राय अपनी समृद्ध शैक्षणिक पृष्ठभूमि और पढ़ाई के प्रति अपने रुझान से सबको आश्चर्यचकित करते है। <br />राय ने प्राचीन इतिहास, आधुनिक इतिहास, राजनीति शास्त्र, भूगोल, हिंदी, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र और संस्कृत जैसे 22 अलग-अलग विषयों में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की है। शिक्षाशास्त्र, प्राचीन इतिहास, हिंदी, वाणिज्य और दशर्नशास्त्र में उन्होंने पीएचडी जबकि हिंदी, संस्कृत और प्राकृत विषयों में उन्होंने डी-लिट की डिग्री हासिल की। <br />राय कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जीवन में सीखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। मैंने कोई अनोखा काम नहीं किया है। जिस आदमी में सीखने की लगन हो वह कुछ भी कर सकता है। <br />राय बिहार के मगध विश्वविद्यालय से प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए है। फिलहाल वह अपनी 23वीं स्नातकोत्तर डिग्री पाने के लिए देश के प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से ज्योतिषशास्त्र में एम.ए कर रहे हैं। <br />राय ने अपनी ज्यादातर डिग्रियां पंजाब विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, वीर कुमार सिंह विश्वविद्यालय आरा, बिहार, और पटना विश्वविद्यालय से अर्जित की हैं। अपने स्नातकोत्तर विषयों में राय ने ज्यादातर प्रथम श्रेणी अंक प्राप्त किए। इस शैक्षणिक पृष्ठभूमि का श्रेय वह मगध विश्वविद्यालय के अपने सहयोगी प्रोफेसरों को देते हैं। <br />राय कहते है, मेरे सहयोगी प्रोफेसर मेरी जिज्ञासाओं और मेरे सवालों का उत्तर उसी तरह से देते थे, जैसे कोई अध्यापक ट्यूशन में छात्रों को देता है। परीक्षा से पहले मुझे वह ज्यादा अंक पाने के टिप्स देते थे। <br />राय फिलहाल बुलंदशहर स्थित काका स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं। यहां पर वह नियमित कक्षाएं लेते हैं। वह कहते, ''मैं हमेशा पढ़ाई से जुड़ा रहना चाहता हूं। इसलिए कोशिश करता हूं कि कम से कम रोज एक कक्षा लेकर छात्रों से बात करूं। <br />अरविंद मिश्राArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-62246557780633652432010-02-23T02:43:00.000-08:002010-02-23T02:51:09.465-08:00इस मंदिर में भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं झाड़ू!<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjq6rzzq7iFiDJ9szc1LjZSnvBpsG1hCknrrFqKRRDFNBrF8ka5UBbJUmrkgK70DEDKPd52x95PUDvsYexWdg00QLCYC75KmdgBWQ1mF1_d0B39szcOcAmJHIuc4IWRO2bseUT0C971lwiD/s1600-h/shiva-t.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjq6rzzq7iFiDJ9szc1LjZSnvBpsG1hCknrrFqKRRDFNBrF8ka5UBbJUmrkgK70DEDKPd52x95PUDvsYexWdg00QLCYC75KmdgBWQ1mF1_d0B39szcOcAmJHIuc4IWRO2bseUT0C971lwiD/s200/shiva-t.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5441389565283835458" /></a><br /><br /><br /><br />भगवान शिव पर बेलपत्र और धतूरे का चढ़ावा तो आपने सुना होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक शिव मंदिर में भक्त उनकी आराधना झाड़ू चढ़ाकर करते हैं।<br /> मुरादाबाद जिले के बीहाजोई गांव के प्राचीन शिवपातालेश्वर मंदिर (शिव का मंदिर) में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढाते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए भारी संख्या में भक्त सिर्फ मुरादाबाद जिले से ही नहीं बल्कि आस-पास के जिलों और दूसरे प्रांतों से भी आते हैं।<br /> मंदिर के एक पुजारी पंडित ओंकार नाथ अवस्थी ने बताया कि मान्यता है कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं।<br /><br /> पुजारी ने बताया कि वैसे तो शिवजी पर झ्झाड़ू चढ़ाने वाले भक्तों की भारी भीड़ नित्य लगती है, लेकिन सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस धारणा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।<br />65 वर्षीय ग्रामीण मकरध्वज दीक्षित के मुताबिक गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था। वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी।<br /><br /> एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही दुर्घटनावश आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारी दास दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली ले लें। महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें।<br /><br /> कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि इस मंदिर में ज्यादातर श्रद्धालु त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, लेकिन संतान प्राप्ति व दूसरी तरह की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी श्रद्धालु भारी संख्या में मंदिर में झाड़ू चढ़ाने आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा झाड़ू चढ़ाए जाने के कारण यहां झाड़ुओं की बहुत जबरदस्त मांग है। मंदिर परिसर के बाहर बड़ी संख्या में अस्थाई झाड़ू की दुकानें देखी जा सकती हैं।<br /><br />अरविंद मिश्राArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-50963844762113016542010-02-22T01:12:00.000-08:002010-02-22T01:21:36.331-08:00गंगा नदी को लिखते हैं चिट्ठियां<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRwCBiQvFVF1nVleFb_vgH78oTl4Fp_8qKNBoHqaMWmCnpHaE9As5a-1CLAzuEo_5nJ-eJwQ_dtQ3Mxsl7wHjE60uNvuPWm2DU8Vkthrr-YJ3C9N-6tOV1F5PntbSZJZxw_V4U-ZtzIR6m/s1600-h/indi38962.jpeg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 136px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRwCBiQvFVF1nVleFb_vgH78oTl4Fp_8qKNBoHqaMWmCnpHaE9As5a-1CLAzuEo_5nJ-eJwQ_dtQ3Mxsl7wHjE60uNvuPWm2DU8Vkthrr-YJ3C9N-6tOV1F5PntbSZJZxw_V4U-ZtzIR6m/s200/indi38962.jpeg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5440995141099387378" /></a><br /><br /><br /><br />इंसानों ही नहीं देवी के पते पर भी यहां पहुंचती हैं चिट्ठियां। ऐसा होता है उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कछला कस्बे में। यहां स्थानीय लोग देवी स्वरूप जीवनदायिनी गंगा नदी को चिट्ठी लिखकर अपने ऊपर अनुकम्पा करने की प्रार्थना करते हैं। <br />देवी [गंगा नदी] से कामना करने की ऐसी अनोखी भक्ति की परंपरा यहां 100 साल से भी अधिक पुरानी है। हालांकि यह प्रथा क्यों शुरू हुई इसे लेकर कई मत हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि गंगा के प्रति इस अनोखी आस्था की शुरुआत उसके जल [गंगाजल] से रोगों से मिली मुक्ति से हुई। <br />स्थानीय शिवसागर गुप्ता ने बताया कि एक प्रचलित मान्यता के अनुसार गांव में बसे पूर्वज किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे। एक बार किसी साधु के कहने से वे गंगा नदी के स्थानीय कछला घाट जाकर गंगाजल घर ले आए और उसे नित्य पीने लगे। धीरे-धीरे उन्हें उस बीमारी से छुटकारा मिल गया। <br />बाद में उन्होंने गंगा मैया को चिट्ठी लिखने की परंपरा शुरू की। जब भी वे किसी बीमारी से ग्रसित होते तो पत्र लिखकर कहते कि गंगा मैया हमें इस बीमारी से मुक्ति दिला दो..फिर उसे गंगा में प्रवाहित कर देते। <br />धीरे-धीरे समय के साथ थोड़ा बदलाव आया। लोग अपनी परेशानियों के साथ-साथ अपनी खुशियों में गंगा मैया को शामिल करने लगे। जब भी लोगों के घर में शादी-विवाह, उपनयन, मुंडन या ग्रह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य होते तो वे गंगा मां को चिट्ठी लिखकर घर आने को आमंत्रित करते कि प्रिय गंगा मैया हम आपको आमंत्रित करते हैं..आप हमारे घर आकर हमें कृतार्थ करिए। <br />स्थानीय ब्रजभान शर्मा कहते हैं कि स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि गंगा मैया उनके आमंत्रण को स्वीकार कर किसी न किसी रूप में उनके घर आकर कार्यक्रमों को खुशी-खुशी सम्पन्न कराती हैं। <br />गंगा मैया को पत्र लिखने की परंपरा केवल कछला कस्बे के लोगों तक ही सीमित नहीं है। बदायूं जिले के दूसरे इलाकों के अलावा आस-पास कि जिलों के लोग भी कछला घाट आकर त्योहारों और मांगलिक कार्यो के मौके पर गंगा नदी को चिट्ठी लिखते हैं और जल में प्रवाहित कर अपने घर आने का न्योता देते हैं। <br />दूर दराज के जो लोग नहीं आ पाते हैं वे गंगा मैया को डाक के माध्यम से चिट्ठी लिखकर भेजते हैं। घाट से कुछ ही दूर पर डाकघर [कछला डाकघर] है। जहां पर रोजाना भारी संख्या में गंगा मैया के नाम से चिट्ठिया आती हैं। शाम को सभी चिट्ठियों को लेकर डाकिया गंगा नदी में जाकर प्रवाहित कर देता है। <br />डाकिया रामभजन सोतिया कहते हैं वैसे आम दिनों में तो रोजाना 40 से 50 चिट्ठिया आती हैं लेकिन त्योहारों के मौके पर इनकी संख्या 200 से 250 पहुंच जाती है। सोतिया अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें काम करने के दौरान रोज गंगा मैया के दशर्न भी हो जाते हैं। वह कहते हैं कि मैं वास्तव में अपने आप को बहुत खुशनसीब मानता हूं। यह गंगा मां की कृपा है कि उन्होंने मुझे इस काम के लिए चुना।<br />अरविंद मिश्राArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-16655133139235287432009-11-11T11:40:00.000-08:002010-02-23T07:13:37.464-08:00लंदन ड्रीम्स<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZlI-E74y2uuNTQzc8CzMoK4Dn7TkAynFWqiXR1cY1QRbYtU-S3Y0iFL-LPvIJEQstm0nw6Qjzk7L9C4yFnZL_HA2qgwn7wJ7sQb7VtemA-OoVhCTV8DuPG9IZGvNWgx303ETnEHp6jAkz/s1600-h/London-Dreams.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZlI-E74y2uuNTQzc8CzMoK4Dn7TkAynFWqiXR1cY1QRbYtU-S3Y0iFL-LPvIJEQstm0nw6Qjzk7L9C4yFnZL_HA2qgwn7wJ7sQb7VtemA-OoVhCTV8DuPG9IZGvNWgx303ETnEHp6jAkz/s200/London-Dreams.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5441457202639900786" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />निर्देशक-विपुल शाह<br />बाजा पेटी--शंकर एहसान-लॉय<br />गीत-प्रसून जोशी<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />नमस्ते लंदन के बाद निर्देशक विपुल शाह लंदन ड्रीम्स के साथ हाजिर हुए। लेकिन इस बार के लंदन में उनके तुरुप के पत्ते अक्षय कुमार नजर नहीं आये। आमतौर पर अक्षय कुमार को अपनी हर फिल्म का नायक बनाने वाले विपुल शाह ने लंदन ड्रीम्स में सलमान खान और अजय देवगन पर भरोसा दिखाया। जिस तरह एक के बाद एक अक्की की हर फिल्म धराशाही होकर निर्माताओं को कंगाल बना रही है उससे विपुल का कन्नी काटना शायद लाजमी भी था।<br /><br />खैर विपुल का दांव सटीक बैठा। फिल्म देश विदेश में जोरदार कमाई कर रही है। कहानी से लेकर गीत-संगीत सभी कुछ प्रभावी है। फिल्म शुरू से लेकर क्लाईमेक्स तक सरपट दौड़ती है और दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब रहती है। दो दोस्तों की अटूट दोस्ती और फिर शीर्ष पर पहुंचने एक दोस्त का किसी भी हद तक जाना...को विपुल ने बेहतरीन ढंग से पेश किया और फिल्म के जरिए संदेश दिया कि कला पर किसी का हक नहीं होता।<br /> <br />इस फिल्म को सलमान और अजय देवगन का लाजवाब अभिनय ने यादगार बना दिया। बहुत समय बाद किसी फिल्म में सलमान इतने मौलिक लगे हैं। बार-बार वह जिस तरह से अजय देवगन को चूमकर कहते हैं कि....तू मेरा प्रा(भाई) है..और लंदन के हवाई अड्डे पर पहुंचने पर चेंकिंग करवाते करवाते वह नेकर में आ जाते हैं...बहुत प्रभावी लगता है। अजय देवगन का अभिनय फिल्म दीवानगी में उनके रंजीत के किरदार का याद दिलाता है। उन्होंने साबित कर दिया कि इस तरह की भूमिकायें करने में उनका कोई सानी नहीं है। <br />फिल्म में सबसे मजबूत पहलू इसके गीत हैं। प्रसून जोशी की कविता में छोटे-मझोले कस्बों और शहरों की आबोहवा और खुशबू होती है। जेबा में तू भरले मस्तियां.......और पेशेवर हवा....इस तरह से शब्द गुलजार को छोड़कर शायद ही पिछले कुछ दशकों में किसी गीतकार की कलम ने उगले हों। शंकर-अहसान-लॉय की बढ़िया कंपोजीशन है। फिल्म का संगीत थोड़ा तेज और लाउड है, लेकिन ये कहानी की मांग के अनुसार फिट बैठता है। हां, अब फिल्म की हीरोइन आसिन के बारे में कुछ बात करते हैं, लेकिन अफसोस फिल्म में सलमान और अजय देवगन के बीच में वह खोकर रह गईं। उनके लिए कुछ बचा ही नहीं था।Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-22824016638138055012009-06-08T15:52:00.000-07:002009-06-08T15:54:54.968-07:00मैं वही का वही हूं<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibGPdPZYyfl7jEaFo5R0w9V4URp35CDDvQiYngq9_mBu3eez1JEpKrY6S3S0EcFIVblPIDwIg2oTLcc8gv1VSXpG70cbXooSx_CRCXhCm7c29q_jLG7Mq1HGiAK96dGam3H0c5ypOH69xB/s1600-h/the-.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 238px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibGPdPZYyfl7jEaFo5R0w9V4URp35CDDvQiYngq9_mBu3eez1JEpKrY6S3S0EcFIVblPIDwIg2oTLcc8gv1VSXpG70cbXooSx_CRCXhCm7c29q_jLG7Mq1HGiAK96dGam3H0c5ypOH69xB/s320/the-.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5345093894236239858" border="0" /></a><br /><br /><br />कहते हैं कि परिवर्तन यानी बदलाव(चेंज) प्रकृति का नियम है और इससे दुनिया का कोई भी जीव-जंतु अछूता नहीं रह पाता है। लेकिन न जाने क्यों मुझे अपने जीवन में कोई बदलाव नहीं महसूस हो रहा। लगता है कि मैं वही का वही हूं।<br /><br />चिंतन करता हूं कि पिछले कई सालों में दुनिया कितनी बदल गई पर मैं वही बासी और पुराना हूं। हर तरफ बदलाव की बयार बही। मुल्कों की सरकारें बदल गईं। पिछले एक दशक से ह्वाइट हाउस में जमे रुतबेदार प्रेसिडेंट जार्ज बुश की जगह अमरीका में ओबामा ने गद्दी संभाल ली।<br />सात घंटे में खत्म होने वाले 50 ओवर के वन डे मैच की जगह ट्वेंटी-20 क्रिकेट के रूप में फटाफट क्रिकेट ने लगभग ले ली।<br /><br />बालीवुड में यश चोपड़ा, सुभाष घई, सूरज बड़जात्या, रामगोपाल वर्मा की बड़े बजट की भव्य फिल्में भव्य फ्लाप होने लगीं, लोग दसविदानिया, भेजा फ्राई, देव-डी, गुलाल और वेडनेस डे जैसी दो-तीन करोड़ की फिल्मों को सराहने लगे।<br /><br />टेलीविजन में अब तुलसी और पार्वती के दिन लद गये। शायद दर्शकों को उनसे उतना लगाव नहीं रहा। अब अक्षरा, बेबो, आरोही, ज्योति, गुंजन टेलीविजन के प्राइम टाइम की नई नायिकायें हो गईं।<br /><br />वैसे बदलाव मैं अपने आस-पास भी देख रहा हूं। पिछले लगभग तीन सालों से लखनऊ में हूं। यहां के कई पार्क कई दफा टूटकर फिर से बन गये। शहर में हरियाली की जगह चारों तरफ पत्थर के हाथी और पुतले उगने लगे। कई बरिस्ता, कैफे काफी डे, मैक-डोनाल्ड्स और मल्टीप्लेक्स खुल गये। लेकिन मेरा जीवन शायद पहले से ज्यादा ऊबाऊ हो गया है।<br /><br /><br /><br />लब्बोलुआब यह कि सारे जहां में परिवर्तन रूपी आक्सीजन बह रही है, लेकिन मेरी जिंदगी में वही बोरियत और अकेलापन है। नयापन महसूस ही नहीं कर पा रहा हूं। मन अजीब सी उधेड़बुन में लगा रहता है। सोच रहा हूं कि कई सालों से लगातार एक ही रूट पर जा रही जिंदगी की रेलगाड़ी की चेनपुलिंग करके किसी छोटे से स्टेशन पर उतर जाऊं। कोई काम न करूं, जो मन करे वो करूं। बारिश होती रहे मैं किसी जंगल में शरपत के छप्पर के नीचे बैठकर दूर-दूर तक केवल निहारता रहूं।<br /><br />अरविंद ।।Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-16137786177790700422008-09-14T06:38:00.001-07:002008-09-14T06:41:46.780-07:00कब थमेगा बेगुनाहों की मौंतों का सिलसिला<div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO-qhxgSQGGyCr05YlI-8SOOkOBruUMruYy74d0fdDmppGiVdb0I8V3TSEq55Y5JWMtw2UP0_rn_MxcQ0WIcL_dw5jO9uuBN0NqbQoGy08Bk6x1jFsiNkFeG2rY9YTox0h_MsHsUsZggJ9/s1600-h/del.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5245871178940078226" style="CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO-qhxgSQGGyCr05YlI-8SOOkOBruUMruYy74d0fdDmppGiVdb0I8V3TSEq55Y5JWMtw2UP0_rn_MxcQ0WIcL_dw5jO9uuBN0NqbQoGy08Bk6x1jFsiNkFeG2rY9YTox0h_MsHsUsZggJ9/s200/del.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFSmHik11dr7liig9P3GSVjs2-tr08A3MUEWvCfpbkUAthMyh_TqHxl9c5KEMYZ811a6L8H93dUuN8x65JOLmfpiQVu46JVOzqsF4zqgmGACdOH0wNhVObBDxYBq03cqWK5fCtAbiA3zfc/s1600-h/top01.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5245871097872966562" style="CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFSmHik11dr7liig9P3GSVjs2-tr08A3MUEWvCfpbkUAthMyh_TqHxl9c5KEMYZ811a6L8H93dUuN8x65JOLmfpiQVu46JVOzqsF4zqgmGACdOH0wNhVObBDxYBq03cqWK5fCtAbiA3zfc/s200/top01.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih3zVsQ_LaFbCKq-KQr9y7pv9EDpwxZKlpF3wkBd-xNoahuxqk1rLSFSKG4YZ5qHMQ5JVXnLDKYa_7XuN4-1apmL_SaEls533azSYkplaDkL44UdR0gteVlQuGYI22DfspHZ8JOr5H9Yy2/s1600-h/del3.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5245871008596577282" style="CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih3zVsQ_LaFbCKq-KQr9y7pv9EDpwxZKlpF3wkBd-xNoahuxqk1rLSFSKG4YZ5qHMQ5JVXnLDKYa_7XuN4-1apmL_SaEls533azSYkplaDkL44UdR0gteVlQuGYI22DfspHZ8JOr5H9Yy2/s200/del3.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpz2zqCNmMCm342w6HRi-kZvz0w-EyRVCHNYTIAn95B3XSx7LSpQuyIM6yRPm4sQiVeyUq5jj4oEj8qNoJ5jZzdt664q7TIM7b2omXai1Oq1bLS6hHPlVZZiQmfdcAzmUHL5Cjc-QJvjxE/s1600-h/reagal.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5245870934350356626" style="CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpz2zqCNmMCm342w6HRi-kZvz0w-EyRVCHNYTIAn95B3XSx7LSpQuyIM6yRPm4sQiVeyUq5jj4oEj8qNoJ5jZzdt664q7TIM7b2omXai1Oq1bLS6hHPlVZZiQmfdcAzmUHL5Cjc-QJvjxE/s200/reagal.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br /><br /><div></div></div></div></div></div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-40459595018491819512008-08-02T08:31:00.001-07:002008-12-08T19:27:19.167-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSYcPXzf7gJNlcaObIEzfKhBpJWaW9dLYEnZWoZDszUXOsHHPTncBPOuy44RbmFDysVvVSZ7-OIydsylSL4zeQGMV_A3wwo10JSGGGpnqhpZRn9ybFywdK_xDUL2ImuoEVhyphenhyphenJ3i3oRc3aY/s1600-h/mission-istambul.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5229943464835589234" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSYcPXzf7gJNlcaObIEzfKhBpJWaW9dLYEnZWoZDszUXOsHHPTncBPOuy44RbmFDysVvVSZ7-OIydsylSL4zeQGMV_A3wwo10JSGGGpnqhpZRn9ybFywdK_xDUL2ImuoEVhyphenhyphenJ3i3oRc3aY/s200/mission-istambul.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>मिशन इस्तांबुल<br /><br />निर्देशक-अपूर्व लाखिया<br /><br />संगीत-अनु मलिक और जाने कौन-कौन<br /><br />आतंकवाद आज पूरी दुनिया की उभयनिष्ठ समस्या बना हुआ है। महाशक्ति अमरीका, ब्रिटेन समेत भारत इस नासूर का से त्रस्त का इलाज खोज रहा है। आतंकवाद पर हॉलीवु़ड और बॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं। निर्देशक अपूर्व लाखिया की हालिया रिलीज फिल्म मिशन इस्तांबुल भी आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर बनी है। लेकिन अपूर्व की फिल्म में आज के आतंकवाद की तबाही मचाने वाली नई सोच को दिखाया गया है। फिल्म में चरमपंथी मीडियाकर्मियों का मुखौटा पहनकर एक जाने माने खबरिया चैनल अल जौहरा के अंदर बैठकर दुनियाभर में आतंक और दहशत का खेल खेलते हैं। अपूर्व ने फॉर्मुला फिल्म में भी नयापन का छौंका लगाया है। अपूर्व की पिछली फिल्म शूट आउट....में माया डोलास का दमदार किरदार निभाने वाले विवेक ओबरॉय ने इस फिल्म में भी शानदार काम किया है। दुर्भाग्य से उनके खाते में कम सीन थे। बाकी पलटन का काम औसत है। विशाल शेखर, प्रीतम और शंकर महादेवन की नई और प्रयोगधर्मी धुनों के आने के बाद लोगों द्वारा लगभग भुला दिए गये अनु मलिक ने फिल्म का संगीत तैयार किया है। अब वह इंडियन आयडल सरीखे नाटक नौटंकी वाले रियलिटी शोज में जज की भूमिका अदा करें तो उनके लिए वही बेहतर होगा। हां, अभिषेक बच्चन पर फिल्माया गया आयटम गीत जब बजता है तो लगता है फिल्म में संगीत भी है।फिल्म में शूटिंग तुर्की के खूबसूरत शहर इस्तांबुल में की गई है। कहानी के हिसाब से लोकेशन एकदम फिट बैठती है।Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-82355789421180982532008-07-06T07:39:00.000-07:002008-12-08T19:27:19.471-08:00एक महानगर का गुरूर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnrGw9ZEyX0z2FciYrX3eYU_nsaF1q5fEOJfh1soIts8rzxc-v0ggoJs120x_Vpv3Xew0TZauj5w28D7BOcNi1tTVUwz-ystlzTOpSrXqdhKRWqq3b9lNK2kqCyWHAeJpXntzo6RR6PdUt/s1600-h/metro_city.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5219911374989967586" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnrGw9ZEyX0z2FciYrX3eYU_nsaF1q5fEOJfh1soIts8rzxc-v0ggoJs120x_Vpv3Xew0TZauj5w28D7BOcNi1tTVUwz-ystlzTOpSrXqdhKRWqq3b9lNK2kqCyWHAeJpXntzo6RR6PdUt/s200/metro_city.jpg" border="0" /></a><br /><div>मैं महानगर हूं। किसी को पहचानता नहीं। सिर्फ अपनी हवस को जानता हूं। मैं सड़कों, पुलों, फ्लाई ओवरों, तेज रफ्तार से भागती गाड़ियों, बहुमंजिला इमारतों, शॉपिंग मॉल्स, दुकानों और दफ्तरों का ऐसा ठाठे मारता समंदर हूं, जिसमें सब डूब जाते हैं, गुम हो जाते हैं। लड़कियां यहां आती हैं बहुत सारे ख्वाब लेकर, ये भरोसा लेकर कि अपने छोटे शहरों और जान-पहचान के मुहल्लों के संकोच से उबर कर वो यहां कुछ कर सकेंगी। लेकिन यहां आकर वे पाती हैं कि सड़कें सिर्फ लंबी नहीं खूंखार भी हैं, कि बसों के भीतर उनकी जगह कितनी कम है, कि दफ्तरों में उनसे किन समझौतों की उम्मीद की जाती है, कि यहां उनके बाकी सारे रिश्ते गुम गए हैं- न कोई पिता है न भाई न दोस्त। बस वो एक लड़की हैं, जिसका एक जिस्म है..जिसे अगर वो बांटने को तैयार नहीं होती, जिसका सौदा करने को राजी नहीं होती तो उसे कई तरह की सजाएं भुगतनी पड़ती हैं। मैं महानगर हूं, इतना बड़ा हूं कि रुलाइयां मुझमें दब जाती हैं, सिसकियों का तो कोई वजूद ही नहीं बनता, मेरे भीतर छोटे शहरों की अनगिनत यादें तड़फड़ाती रहती हैं, अपने घरों को वापस लौटने की नामुमकिन सी इच्छा मेरे रोजमर्रा में पिसकर चूर-चूर हो जाती है.. मैं ताकत का वो गरूर हूं, कामयाबी का वो नशा हूं जिसके बड़ी जल्दी आदी हो जाते हैं लोग....वो भूलते चले जाते हैं अपना अतीत, अपने घर, घर में सीखे गए अपने संस्कार, किसी बचपन में सीखी गई अपनी मनाहियां...वो धीरे-धीरे लोग नहीं रह जाते हैं, मेरा पुर्जा बन जाते हैं। उनके भीतर सिर्फ इच्छाएं रह जाती हैं, सिर्फ कुछ हासिल करने की तड़प और न मिलने पर छीन लेने की आतुरता। इसी आतुरता की शिकार होती हैं वो मासूम लड़कियां...जो महानगर में अकेले निकलने का दुस्साहस करती हैं। मै महानगर हूं, लेकिन जंगल के कानून पर चलता हूं, कि जिसके हाथ में ताकत है उसकी मर्जी चलेगी.. और बाकी सारी इच्छाएं कुचल दी जाएंगी, बाकी सारे स्वाभिमान नष्ट कर दिए </div><div> </div><div><span class=""></span> </div><div><span class=""></span>साभार-बात पते की</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-8943574590879024032008-07-03T04:39:00.000-07:002008-12-08T19:27:19.587-08:00गुलज़ार का जादू<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrDw9SbaxdYfgSlXjEs7M-vqZxVefK8rxgWT0qKzETRLsKUiTG-sVAD5vRR9scjwvrwL0WZohhyphenhyphen2JTV3PlZVDSreVleHlYk4YMMj868EbuE9HOy4Ae5OoeAwGBOSkdQF34be9pE41siQXJ/s1600-h/gulzar.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5218753847050934674" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrDw9SbaxdYfgSlXjEs7M-vqZxVefK8rxgWT0qKzETRLsKUiTG-sVAD5vRR9scjwvrwL0WZohhyphenhyphen2JTV3PlZVDSreVleHlYk4YMMj868EbuE9HOy4Ae5OoeAwGBOSkdQF34be9pE41siQXJ/s200/gulzar.jpg" border="0" /></a><br /><div>जार-जार रोने और जोर-जोर से हंसने वाली, हर बात को, हर जज्बात को अति नाटकीय ऊंचाइयों तक ले जाने वाली मुंबइया फिल्मों की दुनिया में एक शख्स ऐसा आता है, जिसे मालूम है कि खामोशी भी बोलती है... कि बहते हुए आंसुओं से ज्यादा तकलीफ पलकों पर ठहरे मोती पैदा करते हैं...कि रुलाइयों से ज्यादा असरदार भिंचे हुए होठों के पीछे छुपाए गए दुख होते हैं।दरअसल, गुलज़ार ने हिंदी फिल्मों को कम बोलकर ज्यादा कहने का सलीका दिया। जिस दुनिया में हर फिल्म प्यार के कारोबार पर टिकी होती है, कदम-कदम पर मोहब्बत के नग्मे गाए जाते हैं, इश्क के ऐलान किए जाते हैं, वहां एक लहराती हुई आवाज इसरार करती है, "प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं, एक खामोशी है सुनती है, कहा करती है।"नूर की बूंद की तरह सदियों से सभ्यताओं को रोशन करने वाली मोहब्बत की ये शमा जब गुलज़ार ने थामी तो परवानों को जलाने का खेल पीछे छूट गया और लोगों ने देखी समंदर में परछाइयां बनाती, पानियों के छींटे उड़ाती और लहरों पर आती-जाती वह लड़की जो बहुत हसीन नहीं है, लेकिन अपनी मासूम अदाओं में बेहद दिलकश है। गुलज़ार आए तो अपने साथ नई कला लाए और रिश्तों की नई गहराई भी। उनके गानों में चांद तरह-तरह की पोशाकें पहनकर आता है, नैना सपने बंजर कर देते हैं और बताते हैं कि जितना देखोगे उतना दुख पाओगे।उनके यहां मोहब्बत सिर्फ जिस्मानी नहीं रह जाती, रूहानी हो उठती है। उनकी फिल्मों में वक्त एक उदास नायक की तरह टहलता दिखाई देता है। किसी सुचित्रा सेन और संजीव कुमार को उनके अतीत के दिनों में लौटाता हुआ, वहां फुरसत के रात-दिन हैं और मोहब्बत का हल्का-हल्का ताप है, लेकिन सबसे ज्यादा वह पुकार है, जो बाहर नहीं भीतर उतरती है। यह छोड़कर जाती नहीं, हमेशा साथ रहती है। याद दिलाती है कि खुद को पहचानने के लिए दूसरों को पहचानना भी जरूरी होता है और हमें एक-दूसरे को समझने की, महसूस करने की कुछ खामोश कोशिशें बनाती हैं। </div><br /><div></div><br /><div></div><br /><div>साभार-बात पते की (प्रियदर्शन जी)</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-22765129099634771642008-06-27T08:51:00.000-07:002008-12-08T19:27:19.859-08:00बिग बी की प्रेस कांफ्रेंस और पत्रकारों का दिखावा- पार्ट वन<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc2WLd4kV0QhNvzfaiKc7ILHwJardYwf9kgPg-9j-1ljV8lgFZcIIk4JG4Y8v_YPx42xtmeDD4W0YSgwg8M19WQO3RjRxfi5WNKF9eI8Jxqn8YNmLxxx9ondISeIUUg6haxeOQkjcPlgHY/s1600-h/bach3km0.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5216591381140951922" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc2WLd4kV0QhNvzfaiKc7ILHwJardYwf9kgPg-9j-1ljV8lgFZcIIk4JG4Y8v_YPx42xtmeDD4W0YSgwg8M19WQO3RjRxfi5WNKF9eI8Jxqn8YNmLxxx9ondISeIUUg6haxeOQkjcPlgHY/s200/bach3km0.jpg" border="0" /></a><br /><div></div><br /><div></div><br /><div><br />पिछले दिनों लखनऊ में अमिताभ बच्चन की प्रेस कांफ्रेंस थी। दिल्ली और मुम्बई तो बच्चन साहब गाहे बगाहे दसवें पंद्रहवें दिन पहुंचते रहते हैं। लेकिन लखनऊ जैसे शहर में तो आगमन बहुत ही कम होता है। क्योंकि अब समाजवादी की पार्टी की सरकार तो रही नहीं। वैसे भी मायावती सरकार आने के बाद यूपी में में जुर्म तो अपने आप ही कम हो गया। तो यूपी में अब बच्चन साहब का क्या काम। खैर वजह थी उनकी हालिया रिलीज फिल्म सरकार राज। फिल्म को तो लोग ज्यादा पसंद कर नहीं रहे तो फिल्म के निर्माता और निर्देशक रामगोपाल वर्मा, अमिताभ बच्चन को भारत भ्रमण करा रहे हैं ताकि मीडिया कवरेज मिले तो लोग गलती से फिल्म देखने की गलती कर दे।खैर अब मूल बिंदु पर आते हैं। राजधानी के पांच सितारा होटल ताज में कुछ ही देर में बिग बी अपनी बहू ऐशवर्या राय के साथ आने वाले हैं। आने के पहले का नजारा ये है कि हाल में कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं है। प्रिंट के कई दर्जन फोटोग्राफर स्टेज के पास पोजीशन लिए खड़े हैं। चेहरे पर खौफ है कि कहीं सही फ्रेम नहीं बना तो संपादक डंडा कर देगा। कमोवेश यही हाल टेलीविजन के कैमरामैनों का है। खैर किसी तरह दैनिक जागरण के रिपोर्टर राजवीर ने मुझे अपने बगल में बैठने की जगह दे दी। उनके बगल में उसी अखबार के एक मठाधीश पत्रकार बैठे हुए थे। जो केवल बच्चन साहब को देखने आये थे। इसी बीच उनका फोन घनघनाया। चूंकि उनके एकदम बगल में था इसलिए फोन करने वाले की धीमी आवाज सुनाई पड़ रही थी। उसने महाशय से पूछा अरे मेरे काम का क्या हुआ? तो इन्होंने बताया कि यार पिछले काफी दिन से तबियत खराब था और आज तो होटल ताज में बैठा हूं, वो अमिताभ की प्रेस कांफ्रेंस है ना इसलिए। तभी एक मेरी मित्र पत्रकार जिनकी अगले साल शादी है, उनके पति का फोन आया। होने वाला पति पूछ रहा है कि यार दिन में फोन नहीं किया? तो वह कहती हैं कि अरे यार बड़ा काम था। अब देखो ना शाम को संपादक जी ने बोला कि अमिताभ बच्चन की प्रेस कांफ्रेंस में तुम्ही को जाना है। क्या यार इतना टाइट शेड्यूल रहता है कि पूछो मत। तभी उसके पति ने फोन अपनी मां को दे दिया तो उऌके कुछ पूछने से पहले ही ये कहती हैं कि मम्मी जी वो अमिताभ की प्रेस कांफ्रेंस में हूं इसलिए आवाज कट रही है। </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-11657509777364943112008-06-11T07:06:00.001-07:002008-06-12T06:05:20.402-07:00मंझोले महानगरों की शुरूआत से पहले झोलाछाप हकीमों की एडवर्टाइजिंगइलाहाबाद, लखनऊ, बनारस और जयपुर जैसे शहरों के बाहरी इलाकों जहां से ये शुरू होते हैं। सड़कों के किनारे अधबने मकान या दुकानें होती हैं। किसी की नींव भरी होती है। तो किसी में आधी दीवारें उठी होती हैं तो किसी ढ़ाचानुमा मकान में छत नहीं होती हैं। ये अधबने मकान उन लोगों के होते हैं, जो शहर में नये-नये जमीन खरीदते हैं या उन लोगों के, जिनकी सोच रहती है कि भई खरीद के डाल दो, कल बढ़कऊ की शादी होगी, परिवार बढ़ेगा। तो रहने के लिए ज्यादा ठौर की जरूरत पड़ेगी। रिश्तेदारी में कम से कम ये बताने को तो हो जाएगा कि मिश्रा जी का फाफामऊ में भी एक प्लाट है। फोकस हाई रहेगा। इसी के दम पर छोटकऊ की शादी का दहेज ४ लाख रूपये बढ़ जाएँगे। इस तरह के अधबने मकानों से झोलाछाप हकीमों की एडवर्टाइजिंग वाली दुकान चल निकलती है। उन्हें अपने प्रचार के लिए मुंशी पार्टी से होर्डिंग किराए पर लेने का लेने का लफड़ा नहीं रहता। तो एक नज़र डालते हैं उन झोलाछाप हकीमों के एडवर्टाइडिंग के मजनून पर---------------<br />१- निसंतान, काम में असफल सैक्स रोगी मिले बुधवार को हकीम उस्मानी से, मस्जिद वाला मोड़ करेली इलाहाबाद।<br />२-सैक्स रोगियों के लिए एक मात्र जगह जहां हैं इलाज की पूरी गारंटी-मिले हर शुक्रवार-हकीम आमिर जुबैर, छाता मार्केट के पीछे, चौक, पुराना लखनऊ।<br />३-काम में असफल रोगी अब निराश न हो, मिले रविवार को-इलाज की पूरी गारंटी-हकीम आबिद नुरानी, पुराने पुल के सामने, लाल मस्जिद, जयपुर<br /> ४- कासिम मलिक का दवाखाना-सैक्स रोगी मिले-बुधवार को-शकरपुर फ्लाईओवर-नई दिल्ली।<br />ये कुछ ऐसे हकीम होते हैं जो सेक्स रोगियों को बेवकूफ बनाकर हिंदुस्तान के लगभग हर शहर में अपनी दुकान चलाते हैं। इस तरह के एडवर्टाइडिंग दिखनी शुरू हो जाय तो समझ लो कि आप जिस शहर जा रहे हैं वो आने वाला है।Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-60631952853347080802008-06-04T08:35:00.000-07:002008-12-08T19:27:20.184-08:00बुंदेलखंड यानी बिकाऊ आइटम<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg45fAew5sAE9RoDXyvNiDBUuK7T6J5u_1HYfzQzJjVih9TAKDG_Oyrc21SWWFHjCqD_WpP4fhGansgt8a1Wpwnr5otAnHYnfKEsaGLL-M7u-_jbDqpaiWeOqVb-_ce9R7juSMXq8lPL_Df/s1600-h/rahul.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5208051315341065074" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg45fAew5sAE9RoDXyvNiDBUuK7T6J5u_1HYfzQzJjVih9TAKDG_Oyrc21SWWFHjCqD_WpP4fhGansgt8a1Wpwnr5otAnHYnfKEsaGLL-M7u-_jbDqpaiWeOqVb-_ce9R7juSMXq8lPL_Df/s200/rahul.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilT7MilRaQyQp_j6bEsov88Eeu41AEmwE2EGUz7DHPxH5LkVIxqlHO2BXqoSl7KXZlJxm2HVhehPC8s0gdLi6qZcLWBho9BF-dlwc9EYPgTRwXAbVUPQHmvHJ_LBSDdrUS73tzUjtCQE_w/s1600-h/img.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5208050628110373650" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilT7MilRaQyQp_j6bEsov88Eeu41AEmwE2EGUz7DHPxH5LkVIxqlHO2BXqoSl7KXZlJxm2HVhehPC8s0gdLi6qZcLWBho9BF-dlwc9EYPgTRwXAbVUPQHmvHJ_LBSDdrUS73tzUjtCQE_w/s200/img.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div>बुंदेलखंड पिछले कुछ समय से खबरिया चैनलों और अखबारों के लिए बिकाऊ आइटम बना हुआ है। उस इलाके के इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं को भी ज्यादा बिकाऊ बनाने के लिए लोग बुंदेलखंड का नाम लगा देते हैं। इस दौरान बुंदेलखंड से कई सौ किलोमीटर दूर बैठकर वहां की एक्सक्लूसिव खबरें कानपुर और लखनऊ से बैठकर ही अखबार के लोगों ने दर्जनों वाईलाइन इकट्टा कर लीं। साहब आलम ये है कि बुंदेलखंड का कोई कुत्ता भी आजकल अगर मर जाता तो उसे अच्छा-खासा कवरेज मिल जाता है।आखिर बुंदेलखंड क्यों? विदर्भ क्यों नहीं ? जहां कि स्थिति शायद बुंदेलखंड से ज्यादा बत्तर है। वहां बुंदेलखंड से कई गुना लोगों ने खुदखुशी कर चुके हैं। मुझे इसका एक ये कारण समझ में आता है कि बुंदेलखंड का इस्तेमाल राजनीतिक दल चुनावी मुद्दा बनाकर हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। विदर्भ के साथ ऐसा नहीं हो रहा है। साथ ही बुंदेलखंड में राहुल गांधी ने ज्यादा दौरे किए हैं। एक दिग्गज अँग्रेजी अखबार के लखनऊ संस्करण के पहले पन्ने पर एक खबर छपी है कि (फूड लूट इन बुंदेलखंड) मतलब एक ऐसी वारदात जिसमें रोटियों की लूट हो गई है। ये पहला ऐसा मौका है जब इस इलाके में इस तरह की घटना हुई है। वगैरह-वगैरह। खैर खबर बड़े अखबार के पहले पेज पर थी , तो उसका फॉलो-अप तो होना ही था। आज मैंने वहां से पुलिस अधिकारियों और कुछ स्थानीय लोगों से बात की तो घटना का एंगल छपी खबर के एंगल से एकदम अलहदा निकला। पुलिस अधिकारियों ने फोन उठाते ही नाराजगी जताते हुए कहा कि आप लोग मामले को क्या से क्या बना देते हैं। आप लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। ऐसा ही रहा तो लोगों की विश्वनीयता खत्म हो जाएगी....वगैरह-वगैरह। मैंने सोचा कि यार अकाल पीड़ित बुंदेलखंड के नाम पर लोग क्या-क्या कर रहे हैं। ये एक चिंता का विषय है। हमें मंथन करना होगा कि अपनी खबरों को सनसनीखेज खोज बनाने के लिए उन पहलुओं को न सामने लाएं जो शायद वास्तविक हैं ही नहीं।</div></div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-85374926743237071752008-06-01T08:43:00.000-07:002008-12-08T19:27:20.352-08:00जन्नत- है दम<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCXqU7gwR0uKu2VJzYVmly-R0rTL4ze3cxY9qUJv0PPxMQOp5_bnd4UgVjUoDfuCvMcM5-kdxOHvDPvFQ5iO2t6Jqv7AFh6f4m2cjRkm_mM6C9hdt9KBvEyyyY9sOBRQL-RJIJ4lOwklXN/s1600-h/still181209027573.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5206939517371426578" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCXqU7gwR0uKu2VJzYVmly-R0rTL4ze3cxY9qUJv0PPxMQOp5_bnd4UgVjUoDfuCvMcM5-kdxOHvDPvFQ5iO2t6Jqv7AFh6f4m2cjRkm_mM6C9hdt9KBvEyyyY9sOBRQL-RJIJ4lOwklXN/s200/still181209027573.jpg" border="0" /></a><br /><div>कैंप-भट्ट कैंप(विशेष फिल्म्स)<br />निर्देशक-कुनाल देशमुख<br />संगीतकार-प्रीतम</div><div><br /><br /><span class="">पिछले दिनों भट्ट साहब की नई नवेली पेशकश जन्नत देखा। अपनी हर फिल्म का तरह इस फिल्म में भी भट्ट साहब बॉलीवुड के सामने कई नये चेहरे लाने वाले वादे में खरे उतरे। जन्नत की पूरी नई टीम वाकई तारीफ के काबिल है। जिस तरह फिल्म को आईपीएल रूपी इंटरटेनिंग सुनामी के बीच में रिलीज करने का जोखिम लिया गया था, ऐसे में अगर निर्देशक कुनाल देशमुख की कहानी और निर्देशन में जरा भी ढ़ील होती तो इसका भी हाल टशन से कम बुरा नहीं होता। जैसा कि पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कोच बॉब वूल्मर की हत्या के बाद भट्ट साहब ने ऐलान किया था कि वह उनके ऊपर फिल्म बनाकर एक ट्रिब्यूट देंगे। वो उन्होंने किया लेकिन सिर्फ २ मिनट के एक सीन में निपटाकर। फिल्म की कहानी उन्होंने बड़ी ही चालाकी से कोच से सट्टेबाज की तरफ घुमा दी। वे भी मजबूर थे, क्योंकि सट्टेबाज का रोल तो उनका भांजा इमरान हाशमी कर रहा था। पूरी फिल्म में इमरान का काम सबसे शानदार है। वह दिन दूर नहीं जब वह एक फिल्म के लिए सात से आठ करोड़ मेहनताना मांगकर खान तिकड़ी को चौंका दें। सीबीआई इंस्पेक्टर का रोल कर रहे समीर कोचर ने भी अपनी पर्सनॉल्टी से दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहे हैं। फिल्म के कुछ और सीन अगर उनके हिस्से में आते तो शायद वह जन्नत को इमरानी प्रकोप से बचाने में कामयाब हो जाते। फिर भी लड़कियों ने इमरान से ज्यादा उनकी सैंडविच खाकर केस सुलझाने की स्टाइल को ज्यादा पसंद किया है। फिल्म की पैकेजिंग और संगीत इसकी जान है। पूर्व क्रिकेटरों पर किया गया एक कमेंट बहुत ही प्रासंगिग लगता है। जिसमें सट्टेबाज अर्जुन एक क्रिकेटर को बिकने के लिए नोटों के हरे-भरे सब्जोबाग दिखाते हुए कह रहा होता है कि एक्स क्रिकेटर का कोई फ्यूचर नहीं होता। वे या तो किसी न्यूज चैनल में बैठकर कमेंट्री करते हैं या फिर किसी लाफ्टर शो में बैठकर खीस निपोरते हैं।जन्नत के संगीतकार प्रीतम को तो जैसे युवाओं की पसंद का पासवर्ड मिल गया हो, अभी उनकी पिछली फिल्म रेस के गाने डिस्कोथेकों में बजने बंद नहीं हुए थे कि जन्नत के गानों ने धूम मचाना शुरू कर दिया। फिल्म में सिनेमैटोग्राफी बहुत ही शानदार है। द.अफ्रीकी शहर जोहांसबर्ग से समुद्री किनारों से लेकर, गगनचुम्बी बिल्डिगों और वहां के मैदानों की हरी घास को बहुत ही मास्टरी से दिखाया गया है।<br /> </span></div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-32856610488882907512008-05-19T08:29:00.001-07:002008-12-08T19:27:20.942-08:00खुदा के लिए-धांसू लग रही है<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaGQx4DnzifsK4uaq61AI2CuT0F6NQlsiiFrjvU3R1TBsztqAb_jwmz_x8LWvtP8mZU3ERRndneO2jTcc4QRfQMrq7Yff4c4XZFshwADY4H_9tgWne4EmZbHg6HKY9OifKB7H2ZJ0aOhY2/s1600-h/lkk1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5202111535018718130" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaGQx4DnzifsK4uaq61AI2CuT0F6NQlsiiFrjvU3R1TBsztqAb_jwmz_x8LWvtP8mZU3ERRndneO2jTcc4QRfQMrq7Yff4c4XZFshwADY4H_9tgWne4EmZbHg6HKY9OifKB7H2ZJ0aOhY2/s200/lkk1.jpg" border="0" /></a><br /><div><br />हाल ही मैंने पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए का ट्रेलर टीवी पर देखा। फिल्म के सारे गानों को तो नहीं सुन पाया पर जो गाना मैंने देखा उसका संगीत तो लाजवाब था। फिल्म के दृश्य बड़ी ही मास्टरी से फिल्माए गए लग रहे थे। कुल मिलकार प्रथम दृष्टा फिल्म बहुत ही शानदार लग रही थी। आमतौर पर पाकिस्तानी फिल्मी तकनीकी रूप से बॉलीवुड की फिल्मों की तुलना में थोड़ी उन्नीस होती हैं। उसका भी एक कारण है वहां न तो बच्चन साबह की तरह कोई मेगास्टार है और न ही यशराज फिल्म्स जैसा कोई मालदार बैनर। अपने मुम्बई फिल्मी मठाधीशों ने भी फिल्म को लेकर शानदार प्रतिक्रिया दी है। काफी कुछ अच्छा लिखा है। इस बार के सप्ताहिक अवकाश में इस निपाटने का मन बना लिया है। </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-60951389940005562922008-03-02T06:07:00.000-08:002008-12-08T19:27:21.241-08:00मुंहफट बादशाह<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgs9IRR1ZYjLRZvdJGlDncBtY83bcsWH6m5ZtPbrXJrXb1e77FjD-A1e5tr2bzvWSqpo2RBY85G__KtUREZ9GC4p-KAbme-GhNZsk0m21MdTCErh7JPCHVcU6CfIMNvNXOG5G06_D0pz12M/s1600-h/shah_rukh_khan[1].jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5173146077227562690" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgs9IRR1ZYjLRZvdJGlDncBtY83bcsWH6m5ZtPbrXJrXb1e77FjD-A1e5tr2bzvWSqpo2RBY85G__KtUREZ9GC4p-KAbme-GhNZsk0m21MdTCErh7JPCHVcU6CfIMNvNXOG5G06_D0pz12M/s200/shah_rukh_khan%5B1%5D.jpg" border="0" /></a><br /><div>लगता है बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान को बड़बोलेपन के पतिंगे ने डस लिया है। इसीलिए आजकल वह किसी को भी कुछ भी बोल देते हैं। पिछले दिनों फिल्मफेयर पुरस्कारों के दौरान उन्होंने सैफ अली खान के साथ मिलकर बॉलीवुड के तमाम नायकों की खिल्ली तो उड़ाई ही, साथ ही फिल्म आलोचकों को अपने लपेटे में लिया। हद तो तब हो गई जब उन्होंने आलोचकों के साथ-साथ उनकी मां और बहनों पर भी फब्तियां कसीं।बेचारे आलोचकों ने शाहरुख के दरबारी चमचों की तरह ओम शांति ओम में उनके अभियन के गुणगान नहीं गाये, तीन महीने से दबे गुस्से और प्रतिशोध की उल्टी शाहरुख ने फिल्मफेयर में कर दी। इस दौरान उन्होंने खिलाड़ी अक्छय कुमार को लेकर भी खूब चुटकियां लीं. आमिर और सलमान का भी माखौल उड़ाया। असल में जिस तरह से अक्छय कुमार की फिल्मों को लेकर टिकट खिड़की पर मारामारी होने लगी है उससे किंग खान को अपना सिंहासन के आसपास भूकम्प जैसी स्थिति का पूर्वाभास होने लगा है। उन्हें यह कतई नागवार गुजरा कि वेलकम ने ओम शांति ओम से ज्यादा की धन उगाही की। एक समय वक्त हमारा है और ऐलान जैसी दर घटियापे की फिल्में करने वाले अक्छय कुमार से आज उन्हें सुपरिस्टारी ताज को खतरा महसूस होने लगा है।शहंशाह अमिताभ बच्चन पर तो वह महीने दो महीने में तीखे प्रहार करते ही रहते हैं, पर शाहरुख को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इस जमाने ने ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार और किंग ऑफ रोमांस राजेश खन्ना को भुला दिया, तो वह किस खेत की शकरकंद हैं। विनम्रता किसी भी सुपरस्टार को महान बनाती है। हमें शाहरुख और उनकी चक दे इंडिया और स्वदेस जैसी फिल्मों पर गर्व है, पर जिस तरह से वह बड़बोलापन दिखा रहे हैं वह उनकी तरह के किसी भी सितारे को शोभा नहीं देता। लोकिन सैफ अली खान का बड़बोलापन लोगों की समझ से परे है.....? आखिर वो इतना क्यों इतरा रहे थे...? शायद अभी वह इस जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं है कि जो भी उनकी फिल्में सफल हुई हैं, वो उनके अभिनय नहीं अपितु यशराज बैनर और गरमागरम दृश्यों की वजह से। आज भी दर्शक उनके नाम पर मल्टीप्लेक्स में टिकट खरीदते समय दलदल में फंसने जैसा खतरा महसूस करता है।</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-49645083873308865582008-02-26T05:14:00.000-08:002008-02-26T05:16:39.483-08:00गलतफहमियों की पतंगनाजुक रिश्तों के धागे में,<br /><span class=""></span> आ के लिपट जाती है,<br />गलतफहमियां की पतंग,<br />वह ऐसे उलझाती है कि<br />हम उसे हटाने में उलझा देते हैं पूरा धागे।।<br />हम बेबस हो जाते हैं,<br />पर कोई नहीं आता मदद को,<br />सभी हमें ठहराते हैं जिम्मेदार,<br />काश, कोई मुझे समझता कि<br />मैं नहीं हूं पतंगबाज।।Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-53023664473465904082008-02-25T06:34:00.000-08:002008-12-08T19:27:21.403-08:00सिनेमाई पटल पर छाये नौनिहाल<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5WnjRKmQJyMygDrd_GgzVPCTNzrgprTjwP4zA3z3J_A2oAKZ5x5rAVNdPnF3uGw9Aqfsbt6cDe_emnFTOlBSNW9X_vS0i38iM0cx-1ydKhNVktXtYR0oaFlZKCl8qR09kb345h_rU_Igu/s1600-h/dar.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5170927997572527490" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5WnjRKmQJyMygDrd_GgzVPCTNzrgprTjwP4zA3z3J_A2oAKZ5x5rAVNdPnF3uGw9Aqfsbt6cDe_emnFTOlBSNW9X_vS0i38iM0cx-1ydKhNVktXtYR0oaFlZKCl8qR09kb345h_rU_Igu/s200/dar.jpg" border="0" /></a><br /><div>बॉलीवुड में निर्देशकों की नई खेप के आने के बाद सिनेमा की हर विधा में बदलाव नजर आए। कहानी, पटकथा, संगीत से लेकर किरदारों को पेश करने के तरीके में सिनेमा में दबंग हुआ है। निर्देशकों की नई पीढ़ी खतरों से खेलने की बड़ी शौकीन है। तारे जमीन पर में आमिर खान ने दर्शील सफारी को फिल्म का हीरो बनाकर दबंग सिनेमा की मिसाल पेश की है। इस फिल्म में आमिर ने इस मिथ को तोड़कर दिखाया कि बच्चे सिर्फ हीरो के बचपन का रोल ही नहीं कर सकते, अगर उन्हें मौका दिया जाय तो वह ऐसी अदाकारी दिखाएंगे कि फिल्मफेयर की जूरी को बेस्ट एक्टर का चुनाव करते समय पसीना आ जाएगा। हालांकि आमिर से पहले समीर कार्णिक नन्हें जैसलमेर, विशाल भारद्वाज ब्लू अम्ब्रेला, केन घोष की चेन कुली की मेन कुली और साजिद खान की हे बेबी में नई पौध को मुख्य किरदार में पेश करके इसकी झलक दिखा चुके हैं. आज से कुछ साल पहले तक बच्चों में बॉलीवुड ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। उनको केवल हीरो का बचपना दिखाने के लिए फिल्म में लिया जाता था। बीच में अगर कुछ गिनी चुनी फिल्में आईं भी, तो वो अमिताभ, शाहरुख और रितिक की फिल्मों के शोर में खो गईं. मगर अब बच्चों को लेकर फिल्में बनाना फायदे का सौदा साबित हो रहा है। जबसे मकड़ी ने ७५ लाख और हनुमान ने तीन करोड़ का बिजनेस किया है तबसे बॉलीवुड ने बच्चों को लेकर और बच्चों के लिए फिल्म बनाने के लिए गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया है। आज बच्चों को एक बड़े उपभोक्ता के तौर पर देखा जाने लगा है। </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-55065623642419831682008-02-19T06:14:00.000-08:002008-12-08T19:27:21.569-08:00लव गुरू बनना सबके बस की बात नहीं<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3y-5CXzAquJTzUkQ2-ZVtskwjyb-c6qU5-td_vuvtTkD6WgBrV72tvHy7wCpN4U4s9zZpfvyFT8OSG_w5Jp4F77MPuUWfQgXWzodhOSZyfsAAWZie-vYFF_i1S8R9adMoUJ7FX_7Zr3QQ/s1600-h/sallu.jpg.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5168695280298538354" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3y-5CXzAquJTzUkQ2-ZVtskwjyb-c6qU5-td_vuvtTkD6WgBrV72tvHy7wCpN4U4s9zZpfvyFT8OSG_w5Jp4F77MPuUWfQgXWzodhOSZyfsAAWZie-vYFF_i1S8R9adMoUJ7FX_7Zr3QQ/s320/sallu.jpg.jpg" border="0" /></a><br /><div><span class=""> आमतौर पर रेडियो सुनना कभी कभार ही होता है. ठीक उसी तरह जैसे कभी याद आया तो आमलेट खा लिया.पर</span> एक दिन अचानक सोते समय रात को थोड़ा परेशान था, सामने रेडियो देखा तो सोचा कि चलो गाना सुनकर टेशन दूर किया जाय. जैसे ही गाना खत्म हुआ कि एक लड़की की आवाज आई कि लव गुरू मैं एक लड़के से प्यार करती हूं पर वह मुझसे प्यार करता है कि नहीं ये पता नहीं. मैं क्या करू. लव गुरू ?? लव गुरू ने उसे बहुत ही बढ़िया तरकीब सुझाई. उसे बाद एक लड़के का फोन आया कि लव गुरू मेरे ऊपर दो लाख रुपये का उधार हो गया है मैं क्या करूं....लव गुरू ने उसको भी समझदारी से उधार चुकाने की तरकीब बताई. मैंने सोचा कि यार ये लव गुरू की नौकरी तो बड़ी मुड़पिरी वाली है. पोर्टनर में सलमान खान तो भास्कर दिवाकर चौधरी जैसे दो चार और फ्रस्टेटेड के केवल प्यार मुहब्बत वाले केस हंडल करते थे पर रेडियो सिटी वाला लव गुरू तो देशव्वापी समस्यायें हंडल करता है. मैंने सोचा कि यार ये लव गुरू बनना आसान नहीं. ये बिना किसी स्वार्थ के सबकी सेवा करता है. बेचारा एसटीडी फोन भी खुद अपनी तरफ से ही करता है. कहते हैं कि रिश्तों का बंधन इतना नाजुक होता है कि तनिक भी गलतफहमी ये यह टूट जाता है। ऐसे में लव गुरू युवाओं को ऐसे कारगर टिप्स देता है, जिससे बिगड़े रिश्ते भी बन जाते हैं। आखिर में फिर से लव गुरू आपको सलूट मारता हूं कि गुरू तुम दुनिया का सबसे कठिन काम रहे हो। </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-42146768496458146472008-02-11T03:58:00.000-08:002008-12-08T19:27:21.998-08:00नई पीढ़ी के कवि<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaw4QBEELQUTuYrVNayV-rHNAlqQoOmRVPdAOZIZWZgA53nPHPKA1rmNVcGGvzLwbVzLQxuyZ1YuoqMhrrnaRCPptWQ6DYV1ZQgvrhfaNkvY1oynhmxmKBtmOfy0mrjPDNDi46HwExU1Ii/s1600-h/30jaideep.jpg"></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoQwzLr75zhfs0esWZ3Yvw6AAY8Uwrpi1vVa9uXxKPlE3tplruT3SMyzvF7klsa74B2XdGNlvNWz_owUKcbmjxC5spx9HUZ22K4CWOM45uYh6IRrJbzclanZIlWy5dtR0qC0sYgQDpMtXI/s1600-h/prasoon.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5165692642892100898" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 233px" height="201" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoQwzLr75zhfs0esWZ3Yvw6AAY8Uwrpi1vVa9uXxKPlE3tplruT3SMyzvF7klsa74B2XdGNlvNWz_owUKcbmjxC5spx9HUZ22K4CWOM45uYh6IRrJbzclanZIlWy5dtR0qC0sYgQDpMtXI/s200/prasoon.jpg" width="200" border="0" /></a><br /><br /><div>प्रसून जोशी, जयदीप साहनी, सैयद कादरी, अनुराग कश्यप और नीलेश मिश्रा की कलम एक नये तरह की कविता और कहानी रच रही हैं, ये लोग न तो किसी आनंद बक्शी के पोते हैं और न ही मुख्यधारा के साहित्यकार. ये शब्दों के ऐसे हरफनमौला खिलाड़ी हैं, जैसे ट्वेंटी-२० क्रिकेट के युवराज सिंह और धौनी. ये पद्मावत, लज्जा और फाइव प्वाइंट समवन जैसे उपन्यास नहीं लिखते पर सत्या, रंग दे बसंती, तारे जमीन पर और चक दे इंडिया जैसी फिल्में लिखते हैं, जो किसी सरोकारी उपन्यास से कम नहीं है. इनकी कवितायें आम जनसानस की तस्वीर पेश करतीं है. इनकी कविताओं में अनजान, बक्शी साहब और इंदीवर जैसे गीतकारों द्वारा प्यार, दिल, धड़कन, तड़पन, मुहब्बत जैसे दशकों से चले आ रहे घिसे पिटे ४०-५० शब्द नहीं हैं. इनकी कविता असाढ़ की बारिश की पहली बूंद और सावन की सुआपंखी घास के नये कोपल की तरह ताजी होती है. ये छायावादी कवियों की तरह ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते, जिनका अर्थ समझने के लिए हमें पहले व्याकरण में स्नातक होना पड़े. ये ठंड़ा मतलब कोका कोला, आदमी फोन लेता है बात करने के लिए और इसको लगाया तो लाइफ झिंगालाला, चांद सिफारिस.......जैसी लाइनें लिखते हैं, जिन्हें सुनकर आम आदमी को लगता है कि वाकई ये उनकी भाषा है, उनकी आवाज है. न कि केवल प्रोफेसर जटाशंकर शास्त्री जैसे विद्वानों की. चक दे इंडिया का गाना<br />बादल पे पांव है, या छोटा गांव है....<br />तारे जमीन पर का<br />क्या इतना बुरा हूं मैं मां......<br />रंग दे बसंती का<br />तुन बिन बताये...<br />ये ऐसी कवितायें हैं, जिनमें हमारे आस-पास की आबोहवा की महक महसूस होती है. इन्हें सुनकर गुलजार का सीना भी फक्र से कुर्ते के बटन तोड़ता होगा. तभी वह आजकल बीड़ी जलाइले....जैसा सीनाफाड़ हिट गाना लिख रहे हैं. उनके सखा जावेद अख्तर भी बाते साल तेरी याद साथ है.....जैसा नसघोलू जोशीला गाना लिखते हैं. प्रसून और जयदीप भले ही हार्ड कोर ऑफिशियल साहित्कार न हों पर इतना तो है कि ये आम आदमी और बाजार के कवि जरूर हैं. ये नई पीढ़ी के गुलजार हैं.</div></div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-22946773779563293412008-02-07T04:26:00.000-08:002008-12-08T19:27:22.112-08:00दर्शील सफारी-छोरे में है दम<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKSvaoWImWqJop6dtZ5eXxoFjMvdlQvuWHdmkv-1L57nXO0cZb9OU4NaAK9KuVDwDyxz09ugtFZ9kd3QbdURr_n8VWZ9lW6N7qMR-QDs2CyYnipLhNrW_rw9A0d8s9PYPwNwAeiRh1kz7G/s1600-h/still1jm4.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5164909425540904210" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKSvaoWImWqJop6dtZ5eXxoFjMvdlQvuWHdmkv-1L57nXO0cZb9OU4NaAK9KuVDwDyxz09ugtFZ9kd3QbdURr_n8VWZ9lW6N7qMR-QDs2CyYnipLhNrW_rw9A0d8s9PYPwNwAeiRh1kz7G/s200/still1jm4.jpg" border="0" /></a><br /><div>मार्च में होने वाले फिल्म फेयर पुरस्कारों में <span class="">दर्शील सफारी</span> को साल के सबसे बेहतरीन एक्टर वाली टोली में नामांकन मिलने से बॉलीवुड़ के मठाधीश मारे चिंता के दुबले हुए जा रहे हैं, कि कहीं नाटू दर्शील बादशाद खान पर भारी ना पड़ जाए. जिसने भी फिल्म देखी है, उसका सारे सिक्स पैक एब्स वाले मेट्रोसेक्सुअल नायकों से मोहभंग हो गया है और वो सिर्फ दर्शील नाम की ही बांसुरी पिपिहा रहा है. वैसे तारीफ करनी होगी आमिर खान की पारखी नज़र की, जिसे जमीन के दस फुट अंदर धंसा खजाना बिना पुरातत्व विभाग का चश्मा लगाये ही नजर आ जाता है. खुद की जेब ढ़ीली करने और चिकने-चुपड़े चॉकलेटी होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी फिल्म में दर्शील जैसे उदन्त बछड़े को मैदान में उतारने का चिकनगुनिया रूपी जोखिम लिया. वरना तो आजकल के बड़े स्टार घर की फिल्म में किसी दूसरे को साइड रोल देने में कई दिन घर में डिस्कशन करते हैं. रोल देते हैं भी तो पटकथा लेखकों पर दबाव बनाकर उस किरदार को इतना कमजोर करवा देते हैं कि वो बेचारा पूरी फिल्म में बीमार नज़र आता है.तारे जमीन पर बनाकर आमिर ने इस बार खुद को ज्यादा हिम्मती साबित किया बजाय दिल्ली के जंतर-मंतर में नर्मदा बांध के खिलाफ आवाज उठाने के. बिना छरहरी नायिका और बिना कम कपड़ों वाली आइटम गर्ल के आमिर ने इस साधारण सी कहानी को लेकर बहुत संवेदनशील फिल्म बनाई, मायानगरी के गुलजार पार्ट-२ प्रसून जोशी ने अपनी कविता और शंकर-एहसान-लॉय की बाजा पेटी तिकड़ी ने आमिर का बखूबी साथ दिया. वैसे चक दे इंडिया में काम तो शाहरुख ने भी धांसू किया है. कम से कम फिल्म देखने के बाद हमारी हॉकी टीम ने एशिया कप तो जीता और देश में कुछ महीने लोग क्रिकेट बुखार से चंगे होकर के हॉकी बुखार की चपेट में आये. अवार्ड किसी को भी मिले काम दोनों का शानदार था. बच्चे दर्शील को मिलेगा तो इससे उसे तो हौसला मिलेगा ही साथ ही हौसला मिलेगा दूसरे फिल्ममेकर्स को कम से कम देखादेखी ही फिल्में बनाएँगे, हौसला मिलेगा अमोल गुप्ते जैसे तमाम और नई पीढ़ी के पटकथा लेखकों को.</div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-68664706044401016382007-10-07T11:23:00.000-07:002008-12-08T19:27:22.311-08:00फिर वही कहानी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTiuJ5yjiH3inB8Sly3d2sTG3xbljTR5xkq3kBZmHTbQSQzdRpdO9KxSMKZeaT9KQJujxjuXAy8oNBojh-VgJO7C6TaKIPlxZIaLPhZ1Q6dNsfaryJR1PZKkSNPecRJy4PhnhHxM5fklqs/s1600-h/go.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5118662788782734162" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTiuJ5yjiH3inB8Sly3d2sTG3xbljTR5xkq3kBZmHTbQSQzdRpdO9KxSMKZeaT9KQJujxjuXAy8oNBojh-VgJO7C6TaKIPlxZIaLPhZ1Q6dNsfaryJR1PZKkSNPecRJy4PhnhHxM5fklqs/s200/go.jpg" border="0" /></a><br /><div>फिल्म-गो<br /></div><div>डायरेक्टर-मनीष श्रीवास्तव<br /></div><div>रेटिंग **<br />लगता है राम गोपाल वर्मा और उनकी फैक्ट्री के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं. इसलिए फैक्ट्री से निकले हर प्रोडक्ट में लोगों को मिलावट की बू आ रही है. आरजीवी की आग और डार्लिंग के बुरे हश्र के बाद दर्शकों ने नई नवेली फिल्म गो का भी वही हाल किया. ८० के दशक में बॉलीवुड में हीरो-हीरोइन के घर से भागने पर दर्जॆनों फिल्में बन चुकी हैं. ऐसे में गो में कुछ अलग नहीं नज़र आता है. फिल्म में सिवाय गोवा के बीचेज में बेहद कम कपड़ो में नहाती निशा कोठारी के अलावा कुछ नहीं है. फिल्म डिप्टी चीफ मिनिस्टर के मर्डर के ताने बाने से शुरू होती इंटरवल के तक पहुंचते-पहुंचते खुद को हिंदी फिल्मों के घटियापे से अलग नहीं कर पाती है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म मस्तानी चाल से सरपट दौड़ती है. जब डायरेक्टर मनीष श्रीवास्तव का कैमरा केके मेनन और राजपाल यादव की तरफ घूमता है, तो कॉमेडी की फुहार आ जाती है., जो फिल्म के आखिर तक स्टॉलमेंट में रिमझम-रिमझिम बरसती रहती है. बीच-बीच में ऐसे डॉयलॉग आते रहते हैं जो हिंदी फिल्मों के के लेखन को दो कौड़ी साबित करने की पूरी आजादी देते हैं. दो यंग कपल अभय(गौतम) और वासु(निशा कोठारी) अपने पपरिवार से परेशान होकर घर से भागते हैं. रास्ते में उनकी बाइक खराब होती है. आगे वह अनजानी मुश्किलों में फंसते जाते हैं. . थ्रिलर और कॉमेडी का सहारा लेकर मनीष फिल्म को और बेहतर बना सकते थे. लेकिन फिल्म बनाते समय वह बहुत जल्दबाजी में लगे. पता नहीं बॉलीवुड के डायरेक्टर्स की स्क्रिप्ट में केके मेनन जैसे दमदार एक्टर्स के लिए ज्यादा सीन नहीं हेते हैं. बेईमान इंस्पेक्टर नागेश के रोल में वह हर सीन में प्रभावित करते हैं. राजपाल यादव का काम भी बेहतरीन है. पर अब उन्हें अपनी भूमिकाओं को लेकर थोड़ा सतर्क हो जाना चाहिए. कहीं-कहीं वह टाइप्ड लगते हैं. बाकी चीफ मिनिस्टर के रोल में रवि काले पूरी तरह से न्याय करते हैं. गो का म्यूजिक प्रसन्ना शेखर, अमर मोहिले और डीजे अकील ने मिलकर दिया है, पर सुनकर ऐसा लगता है जैसे इनमें से किसी को भी धुनों में थोड़ी बहुत भी मास्टरी नहीं है. परिणीता जैसी फिल्म के गाने लिखने वाले स्वानंद किरकिरे की लाइनें ऊटपटांग और अर्थहीन हैं, जिन्हें समझने के लिए शायद दर्शकों को सिनेमाहॉल से निकलने के बाद अलग से समय देना पड़ेगा. </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7269869602268938146.post-27835840414634685472007-09-28T12:26:00.000-07:002008-12-08T19:27:22.477-08:00थ्रिलर की निकला हवा--जॉनी गद्दार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmQr_ip7LT1p1sfy-dPevcJmS3jESFQr5Kmc9vBoVdumuWHbomY1X9UWTmOSXhMKvnwoYhyX5wMzvLIiKTJQWzcvartFRHCnbWhl8Qo17Rx8GvXgfy6uSO-aI30WEayCwcgEJNBxY6bgIQ/s1600-h/johney.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5115339166995430210" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmQr_ip7LT1p1sfy-dPevcJmS3jESFQr5Kmc9vBoVdumuWHbomY1X9UWTmOSXhMKvnwoYhyX5wMzvLIiKTJQWzcvartFRHCnbWhl8Qo17Rx8GvXgfy6uSO-aI30WEayCwcgEJNBxY6bgIQ/s200/johney.jpg" border="0" /></a><br /><div><span class="">रेटिंग*</span>*<br /><br /><br /></div><br /><div></div><br /><div>डायरेक्टर-श्रीराम राघवन<br /><br />राम गोपाल वर्मा ने अपने जितने भी असिस्टेंट डायरेक्टर्स को फैक्ट्री की फिल्में बनाने का मौका दिया, तो उन्होंने एक हसीना थी, डी, अब तक छप्पन और वास्तुशास्त्र जैसी फिल्में बनाकर खुद को रामू का होनहार चेला साबित किया. इनकी कहानी के ट्रीटमेंट और डरावने बैकग्राउंड म्यूजिक से लेकर कैमरा घुमाने की स्टाइल में रामू की झलक देखने को मिली, लेिकन रामू से अलग होने के बाद उनके चेलों के कैमरे इंडिपेंडेंट हो गये. डायरेक्टर शिमित अमीन ने चक दे इंडिया जैसी अलग तरह की फिल्म बनाकर इस बात को साबित किया है. लेकिन एक हसीना थी फेम श्रीराम राघवन इस मामले में चूक गये हैं. वह अपनी पिछली फिल्म के मुकाबले इस बार कहीं नहीं ठहरते हैं. अगले सीन में क्या होने वाला है दर्शक इसे पहले से ही जानते हैं.इंटरवल के बाद राघवन कहीं-कहीं पर इंटेरेस्ट पैदा करने में कामयाब रहे हैं. बाकी फिल्म में उन्होंने थ्रिलर और सस्पेंस के नाम पर खूब ठगा है. आगे से दर्शक उनकी फिल्मों को लेकर चौकंने रहेंगे. पिछले दिनों जब धर्मेंद्र अपने बेटों के साथ फिल्म अपने में नज़र आए तो ऐसा लगा कि शायद हीमैन पुराने जोश में लौट आया है. पर यहां तो एक्टिंग कम फार्मेलिटी ज्यादा करते दिखे. उन्हें अमिताभ बच्चन से कुछ सबक लेना चाहिए. फिल्म के हीरो नील मुकेश तो पहले से कुछ एक्टिंग क्लासेज करके् आते तो बेहतर रहता. डायरेक्टर को उनसे डायलॉग बोलवाने में खासी मशक्कत करना पड़ी होगी. रिमी सेन तो पूरी फिल्म में गुलदस्ते के फूल की तरह नज़र आई हैं. कुछ नाच गाना करतीं तो शायद दर्शकों को शायद थोड़ा कम अफसोस होता. अगर फिल्म में विनय पाठक और जाकिर हुसैन की दिलचस्प नोंक-झोंक न होती तो दर्शक आधी फिल्म से ही भाग खड़े होते. इस साल की सबसे कमाऊ फिल्म के हीरो विनय पाठक विनय पाठक ने एक बार फिर बेहतर रहे हैं. स्क्रिप्ट की बंदिशों के बावजूद उनका काम लाजवाब है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक इतना कानफोड़ू है कि दर्शकों को फिल्म के गानों से नफरत हो जाती है. ज्यादातर मेलोडियस म्यूजिक कंपोज करने वाले विशाल-शेखर से लोगों को ऐसी बेसुरी धुनों की उम्मीद नहीं थी. जॉनी गद्दार के गीतकार जयदीप साहनी से लोग तब तक नाराज रहेंगे, जब तक उनकी कलम चक दे..... सरीखा देशव्यापी हिट गाना दोबारा नहीं लिखेगी. </div>Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13919903961260253268noreply@blogger.com1