मंगलवार, 4 मई 2010

जन्म-मरण अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा





क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!


जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

सौ..अटल बिहारी वाजपेई

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार बाजपेयी जी की रचना प्रस्तुत करने का.

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

दिलीप ने कहा…

Atal ji ki Ravi ki shapah na poori ahi bhi abhut achchi lagti hai...

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार।

कविता रावत ने कहा…

बाजपेयी जी की रचना प्रस्तुत करने का आभार

abhishek ने कहा…

mishra ji yeh SIRF kavita nahi likhi hai, isaka backgroung bahut bada hai