
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
सौ..अटल बिहारी वाजपेई
6 टिप्पणियां:
आभार बाजपेयी जी की रचना प्रस्तुत करने का.
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
Atal ji ki Ravi ki shapah na poori ahi bhi abhut achchi lagti hai...
बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार।
बाजपेयी जी की रचना प्रस्तुत करने का आभार
mishra ji yeh SIRF kavita nahi likhi hai, isaka backgroung bahut bada hai
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