मंगलवार, 25 सितंबर 2007

खूब बजेगी ढोल


डायरेक्टर-प्रियदर्शन
रेटिंग ***
करीब एक दशक पहले कॉमेडी स्कूल के प्रिंसिपल माने जाने वाले डेविड धवन जो भी फिल्म बनाते थे. दर्शक उसे देखने के लिए टूट पड़ते थे. कुछ ऐसा ही हाल अब डायरेक्टर प्रियदर्शन का है. विरासत जैसी गंभीर फिल्म बनाने के बाद प्रियदर्शन हेरा-फेरी के जरिए कॉमेडी में अपने डेब्यू के बाद दर्शकों को लगातार हंगामा, हलचल, गरम-मसाला और भागमबाग से नॉन स्टॉप हंसी का डोज देते आ रहे हैं. सिचुएशनल कॉमेडी प्रियदर्शन की पिल्मों की खासियत रही है. उनकी फिल्मों के कैरेक्टर्स की कॉमिक टाइमिंग इतनी बेहतरीन होती है कि उनमें कहीं से भी भी बनावटीपन नज़र नहीं आता है. ये बात उन्होंने ढोल में भी साबित की है. फिल्म के चारों किरदारों के बीच गजब की केमिस्ट्री देखने को मिलती है. फिल्म की खासियत है कि इन चारों से किसी भीने एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश नहीं है. इसीलिए मूर्ख और लंपट नौजवानों के अमीर बनने की कसरत पर कई फिल्में आने के बाद भी यह फिल्म बोर नहीं करती है. फिल्म में पकिया (शरमन) मारू (राजपाल), सैम(तुषार) और गोटी (कुणाल) चार दोस्त हैं जो बिना मेहनत किए जिंदगी के सारे ऐशआराम पाना चाहते हैं. इन्हें किसी अमीरजादे का जमाई बनने का आईडिया आता है और इसकी आजमाइस ये पड़ोस में रहने वाली रितु (तनुश्री) पर करते हैं. उसे इम्प्रेस करने के चक्कर में ये एक दूसरे के लिए ही मुसीबतें खड़ी करते हैं. फिल्म में राजपाल यादव ने अपनी बेवकूफी से भरी हरकतों से सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. हलांकि शरमन और तुषार और कुणाल ने भी हंसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. फिल्म में बगैर फूहड़ता और द्विअर्थी संवादो के कॉमेडी है. फिल्म के एक गाने में अँधाधुंध खर्च किया गया है. प्रियदर्शन ने प्रीतम के म्यूजिक के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है.

2 टिप्‍पणियां:

Neelima ने कहा…

बहुत घटिया कोमेडी बहुत बहुत घटिया निर्देशन ! हे रे भारतीय! दर्शक तेरी यही इमेज है कि तुझे ऎसा ही माल परोसा जाए

Udan Tashtari ने कहा…

किसी मित्र ने सूचित किया कि न ही देखो तो बेहतर.