आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
साभार- अटल बिहारी वाजपेई जी
गुरुवार, 13 मई 2010
शुक्रवार, 7 मई 2010
कौरव कौन , कौन पांडव
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
सौ..श्री अटल बिहारी वाजपेई
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
सौ..श्री अटल बिहारी वाजपेई
मंगलवार, 4 मई 2010
जन्म-मरण अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा
क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
सौ..अटल बिहारी वाजपेई
बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
उम्र 65, 22 एमए व पांच पीएचडी डिग्रियां
उम्र के 65वें पड़ाव पर भी उत्तर प्रदेश निवासी आर. के. राय छात्र है, जिनके पास अभी 22 विषयों में स्नातकोत्तर [एमए], 5 विषयों में पीएचडी और 3 विषयों में डी-लिट की डिग्रियां है।
प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद निवासी राय अपनी समृद्ध शैक्षणिक पृष्ठभूमि और पढ़ाई के प्रति अपने रुझान से सबको आश्चर्यचकित करते है।
राय ने प्राचीन इतिहास, आधुनिक इतिहास, राजनीति शास्त्र, भूगोल, हिंदी, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र और संस्कृत जैसे 22 अलग-अलग विषयों में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की है। शिक्षाशास्त्र, प्राचीन इतिहास, हिंदी, वाणिज्य और दशर्नशास्त्र में उन्होंने पीएचडी जबकि हिंदी, संस्कृत और प्राकृत विषयों में उन्होंने डी-लिट की डिग्री हासिल की।
राय कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जीवन में सीखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। मैंने कोई अनोखा काम नहीं किया है। जिस आदमी में सीखने की लगन हो वह कुछ भी कर सकता है।
राय बिहार के मगध विश्वविद्यालय से प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए है। फिलहाल वह अपनी 23वीं स्नातकोत्तर डिग्री पाने के लिए देश के प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से ज्योतिषशास्त्र में एम.ए कर रहे हैं।
राय ने अपनी ज्यादातर डिग्रियां पंजाब विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, वीर कुमार सिंह विश्वविद्यालय आरा, बिहार, और पटना विश्वविद्यालय से अर्जित की हैं। अपने स्नातकोत्तर विषयों में राय ने ज्यादातर प्रथम श्रेणी अंक प्राप्त किए। इस शैक्षणिक पृष्ठभूमि का श्रेय वह मगध विश्वविद्यालय के अपने सहयोगी प्रोफेसरों को देते हैं।
राय कहते है, मेरे सहयोगी प्रोफेसर मेरी जिज्ञासाओं और मेरे सवालों का उत्तर उसी तरह से देते थे, जैसे कोई अध्यापक ट्यूशन में छात्रों को देता है। परीक्षा से पहले मुझे वह ज्यादा अंक पाने के टिप्स देते थे।
राय फिलहाल बुलंदशहर स्थित काका स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं। यहां पर वह नियमित कक्षाएं लेते हैं। वह कहते, ''मैं हमेशा पढ़ाई से जुड़ा रहना चाहता हूं। इसलिए कोशिश करता हूं कि कम से कम रोज एक कक्षा लेकर छात्रों से बात करूं।
अरविंद मिश्रा
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
इस मंदिर में भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं झाड़ू!
भगवान शिव पर बेलपत्र और धतूरे का चढ़ावा तो आपने सुना होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक शिव मंदिर में भक्त उनकी आराधना झाड़ू चढ़ाकर करते हैं।
मुरादाबाद जिले के बीहाजोई गांव के प्राचीन शिवपातालेश्वर मंदिर (शिव का मंदिर) में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढाते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए भारी संख्या में भक्त सिर्फ मुरादाबाद जिले से ही नहीं बल्कि आस-पास के जिलों और दूसरे प्रांतों से भी आते हैं।
मंदिर के एक पुजारी पंडित ओंकार नाथ अवस्थी ने बताया कि मान्यता है कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं।
पुजारी ने बताया कि वैसे तो शिवजी पर झ्झाड़ू चढ़ाने वाले भक्तों की भारी भीड़ नित्य लगती है, लेकिन सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस धारणा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
65 वर्षीय ग्रामीण मकरध्वज दीक्षित के मुताबिक गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था। वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी।
एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही दुर्घटनावश आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारी दास दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली ले लें। महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें।
कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि इस मंदिर में ज्यादातर श्रद्धालु त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, लेकिन संतान प्राप्ति व दूसरी तरह की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी श्रद्धालु भारी संख्या में मंदिर में झाड़ू चढ़ाने आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा झाड़ू चढ़ाए जाने के कारण यहां झाड़ुओं की बहुत जबरदस्त मांग है। मंदिर परिसर के बाहर बड़ी संख्या में अस्थाई झाड़ू की दुकानें देखी जा सकती हैं।
अरविंद मिश्रा
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
गंगा नदी को लिखते हैं चिट्ठियां
इंसानों ही नहीं देवी के पते पर भी यहां पहुंचती हैं चिट्ठियां। ऐसा होता है उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कछला कस्बे में। यहां स्थानीय लोग देवी स्वरूप जीवनदायिनी गंगा नदी को चिट्ठी लिखकर अपने ऊपर अनुकम्पा करने की प्रार्थना करते हैं।
देवी [गंगा नदी] से कामना करने की ऐसी अनोखी भक्ति की परंपरा यहां 100 साल से भी अधिक पुरानी है। हालांकि यह प्रथा क्यों शुरू हुई इसे लेकर कई मत हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि गंगा के प्रति इस अनोखी आस्था की शुरुआत उसके जल [गंगाजल] से रोगों से मिली मुक्ति से हुई।
स्थानीय शिवसागर गुप्ता ने बताया कि एक प्रचलित मान्यता के अनुसार गांव में बसे पूर्वज किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त थे। एक बार किसी साधु के कहने से वे गंगा नदी के स्थानीय कछला घाट जाकर गंगाजल घर ले आए और उसे नित्य पीने लगे। धीरे-धीरे उन्हें उस बीमारी से छुटकारा मिल गया।
बाद में उन्होंने गंगा मैया को चिट्ठी लिखने की परंपरा शुरू की। जब भी वे किसी बीमारी से ग्रसित होते तो पत्र लिखकर कहते कि गंगा मैया हमें इस बीमारी से मुक्ति दिला दो..फिर उसे गंगा में प्रवाहित कर देते।
धीरे-धीरे समय के साथ थोड़ा बदलाव आया। लोग अपनी परेशानियों के साथ-साथ अपनी खुशियों में गंगा मैया को शामिल करने लगे। जब भी लोगों के घर में शादी-विवाह, उपनयन, मुंडन या ग्रह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य होते तो वे गंगा मां को चिट्ठी लिखकर घर आने को आमंत्रित करते कि प्रिय गंगा मैया हम आपको आमंत्रित करते हैं..आप हमारे घर आकर हमें कृतार्थ करिए।
स्थानीय ब्रजभान शर्मा कहते हैं कि स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि गंगा मैया उनके आमंत्रण को स्वीकार कर किसी न किसी रूप में उनके घर आकर कार्यक्रमों को खुशी-खुशी सम्पन्न कराती हैं।
गंगा मैया को पत्र लिखने की परंपरा केवल कछला कस्बे के लोगों तक ही सीमित नहीं है। बदायूं जिले के दूसरे इलाकों के अलावा आस-पास कि जिलों के लोग भी कछला घाट आकर त्योहारों और मांगलिक कार्यो के मौके पर गंगा नदी को चिट्ठी लिखते हैं और जल में प्रवाहित कर अपने घर आने का न्योता देते हैं।
दूर दराज के जो लोग नहीं आ पाते हैं वे गंगा मैया को डाक के माध्यम से चिट्ठी लिखकर भेजते हैं। घाट से कुछ ही दूर पर डाकघर [कछला डाकघर] है। जहां पर रोजाना भारी संख्या में गंगा मैया के नाम से चिट्ठिया आती हैं। शाम को सभी चिट्ठियों को लेकर डाकिया गंगा नदी में जाकर प्रवाहित कर देता है।
डाकिया रामभजन सोतिया कहते हैं वैसे आम दिनों में तो रोजाना 40 से 50 चिट्ठिया आती हैं लेकिन त्योहारों के मौके पर इनकी संख्या 200 से 250 पहुंच जाती है। सोतिया अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें काम करने के दौरान रोज गंगा मैया के दशर्न भी हो जाते हैं। वह कहते हैं कि मैं वास्तव में अपने आप को बहुत खुशनसीब मानता हूं। यह गंगा मां की कृपा है कि उन्होंने मुझे इस काम के लिए चुना।
अरविंद मिश्रा
बुधवार, 11 नवंबर 2009
लंदन ड्रीम्स
निर्देशक-विपुल शाह
बाजा पेटी--शंकर एहसान-लॉय
गीत-प्रसून जोशी
नमस्ते लंदन के बाद निर्देशक विपुल शाह लंदन ड्रीम्स के साथ हाजिर हुए। लेकिन इस बार के लंदन में उनके तुरुप के पत्ते अक्षय कुमार नजर नहीं आये। आमतौर पर अक्षय कुमार को अपनी हर फिल्म का नायक बनाने वाले विपुल शाह ने लंदन ड्रीम्स में सलमान खान और अजय देवगन पर भरोसा दिखाया। जिस तरह एक के बाद एक अक्की की हर फिल्म धराशाही होकर निर्माताओं को कंगाल बना रही है उससे विपुल का कन्नी काटना शायद लाजमी भी था।
खैर विपुल का दांव सटीक बैठा। फिल्म देश विदेश में जोरदार कमाई कर रही है। कहानी से लेकर गीत-संगीत सभी कुछ प्रभावी है। फिल्म शुरू से लेकर क्लाईमेक्स तक सरपट दौड़ती है और दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब रहती है। दो दोस्तों की अटूट दोस्ती और फिर शीर्ष पर पहुंचने एक दोस्त का किसी भी हद तक जाना...को विपुल ने बेहतरीन ढंग से पेश किया और फिल्म के जरिए संदेश दिया कि कला पर किसी का हक नहीं होता।
इस फिल्म को सलमान और अजय देवगन का लाजवाब अभिनय ने यादगार बना दिया। बहुत समय बाद किसी फिल्म में सलमान इतने मौलिक लगे हैं। बार-बार वह जिस तरह से अजय देवगन को चूमकर कहते हैं कि....तू मेरा प्रा(भाई) है..और लंदन के हवाई अड्डे पर पहुंचने पर चेंकिंग करवाते करवाते वह नेकर में आ जाते हैं...बहुत प्रभावी लगता है। अजय देवगन का अभिनय फिल्म दीवानगी में उनके रंजीत के किरदार का याद दिलाता है। उन्होंने साबित कर दिया कि इस तरह की भूमिकायें करने में उनका कोई सानी नहीं है।
फिल्म में सबसे मजबूत पहलू इसके गीत हैं। प्रसून जोशी की कविता में छोटे-मझोले कस्बों और शहरों की आबोहवा और खुशबू होती है। जेबा में तू भरले मस्तियां.......और पेशेवर हवा....इस तरह से शब्द गुलजार को छोड़कर शायद ही पिछले कुछ दशकों में किसी गीतकार की कलम ने उगले हों। शंकर-अहसान-लॉय की बढ़िया कंपोजीशन है। फिल्म का संगीत थोड़ा तेज और लाउड है, लेकिन ये कहानी की मांग के अनुसार फिट बैठता है। हां, अब फिल्म की हीरोइन आसिन के बारे में कुछ बात करते हैं, लेकिन अफसोस फिल्म में सलमान और अजय देवगन के बीच में वह खोकर रह गईं। उनके लिए कुछ बचा ही नहीं था।
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